Saturday, October 1, 2011

रूठ न जाना

साथ चले ह़ो तो जीवन भर साथ निभाना
साथी,
रूठ न जाना !

मैंने कब ये चाहा था तुम
मुझपर सर्वश्व न्योछावर कर दो
कब चाहा था मैंने तुम
अपने इन कोमल कंधो पर
मेरी आशाओं का अम्बर लो
पर तुम आए
आँख झुकाई
हौले से
थोडा मुस्काए
और मेरे बोझिल कंधो पर
फूल सा अपना हाथ रख दिया
मेरे थके बिंधे पंखो को
फिर से नई उडान मिल गई
ऊपर अम्बर नीचे सागर
फिर भी धुंधलाते नयनो को
सागर तट की पहचान मिल गई
उठेंगे तूफान तो उनमे खो मत जाना
साथी,
रूठ न जाना !

योग्य नही संभवतः इसके
फिर भी पाया प्यार तुम्हारा
है सहश्त्र आभार तुम्हारा
मात दिया तेरे आँचल ने
सूरज की तपती किरणों को
मेरी खातिर
तपते रस्ते पर
तुमने शीतलता कर दी
मुझ पाषाण ह्रदय में तुमने
थोड़ी सी कोमलता भर दी
दुःख पहुचेगा, अब मत ठेस लगाना
साथी,
रूठ न जाना !
 
 
----------------------------------अरुन श्री !

No comments:

Post a Comment