Monday, March 12, 2012

सुप्रभात


माना रात है
कोई दिया नही
ठोकरें भी है ,
लेकिन जानता हूँ मैं
उम्मीद का हाँथ
तुम नही छोड़ोगे !
नही करोगे निराशा की बातें !
चलते रहोगे मेरे साथ
स्वप्न पथ पर !
अ-थके
अ-रुके
अ-रोके !

तब तक

-जब तक सुनहली किरने
चूम न लें
मेरे-तुम्हारे सपनो का ललाट !

-जब तक सूर्य गा न ले
मेरे तुम्हारे सम्मान में
विजय गीत !

-जब तक पीला न पड़ जाए
अँधेरे का चाँद चेहरा !

-जब तक कह न उठे
रात की पनीली आँखें

जाओ पथिक
तुम्हारे पाँव से रीसता खून
चमकता रहेगा युगों तक
मेरे तारों भरी चुनरी पर
दीप बनकर !


……………………….. अरुन श्री !

कंगूरों तक चढूंगा


सुनो राजन !
तुम्हे राजा बनाया है हमीं ने !
और अब हम ही खड़े है
हाथ बांधे
सर झुकाए
सामने अट्टालिकाओं के तुम्हारे !
जिस अटारी पर खड़े हो
सभ्यता की ,
तुम कथित आदर्श बनकर ,
जिन कंगूरों पर
तुम्हारे नाम का झंडा गड़ा है ,
उस महल की नींव देखो !
क्षत-विक्षत लाशें पड़ी है
हम निरीहों के अधूरे ख्वाहिशों की ,
और दीवारें बनी है
ईंट से हैवानियत की !

है तेरे संबोधनों में दब चुकी
चीत्कार सब कुचले हुओं की !
अट्टाहासों से तुम्हारे हार माने
सिसकियाँ ,
आहें सभी हारे हुओं की !

है भरे भंडार तेरी वासना के
भूख हम सब की तुम्हें दिखती नहीं है !

सिसकियाँ तुम सुन न पाए
अब मेरी हुंकार देखो ,
आँख से झरता हुआ अंगार देखो !
मैं उठा तो फिर कहाँ रोके रुकुंगा !
एक दिन मैं नींव का पत्थर
कंगूरों तक चढूंगा !!



........................................ अरुन श्री !

ग़ज़ल - मिरे आफ़ताब में


वो दिन भले रहे जो वफ़ा थी हिजाब में
परदा हटा कि डूब चुके हम शराब में

वो तो जला चुका है सुगंधें बहार की
मैं सोचता हूँ फूल मिलेंगे किताब में

मैं बांटता रहा था खुशी घूम घूम कर
फिर यूँ हुआ कि डूब गया मैं अजाब में

वो तो सिले की बात कभी सोचता नहीं
है कर के नेकियाँ जो बहाता चनाब में

अपना पता लिखा न खतों में कभी उसे
वो चाहकर भी कुछ न लिखेगा जवाब में

मैं जुगनुओं को कैद करूँगा नहीं कभी
कुछ रोशनी बची है मिरे आफ़ताब में




…………………………............... अरुन श्री!

नज़्म - मेरे हक़ में दुआएं करना


रास्ते प्यार के अब ह़ो चुके दुश्मन साथी
अब चलो बाँट लें हम मंजिलें अपनी-अपनी
वर्ना ये गर्द उठेगी अभी तूफां बनकर
ख्वाब आँखों के सभी चुभने लगेंगे तुमको
बनके आंसू अभी टपकेंगे तपते रस्ते पर
मगर ये पाँव के छालों को न राहत देंगे !

तपिश तो और अभी और बढ़ेगी साथी
तब भी क्या प्यार में जल पाओगी शमां बनकर ?
पाँव रक्खोगी जब जलते हुए अंगारों  पर
शक्लें आँखों में ही रह जाएंगी धुआं बनकर !

मैं जानता हूँ कि अब कुछ नही होने वाला
वक्त को बांध सका कब कोई रोने वाला !
गर्दिशें आंसुओं से मिट तो नही सकती हैं
और लड़ना भी तो मुमकिन नही होगा साथी!
तुम खुश हो ज़माने के सितम सह कर भी
तो मैं किसके लिए दुनिया से बगावत कर लूँ !

रास्ते प्यार के अब ह़ो चुके दुश्मन साथी
अब चलो बाँट लें हम मंजिलें अपनी-अपनी !
चलो इस प्यार की खातिर ही जुदा ह़ो जाए
मै कही दूर से तड़पूंगा तुम्हारी खातिर
तुम कही और मेरे हक़ में दुआएं करना !!



............................................................... अरुन श्री !

प्रेम के रहस्य


मैं दिया करता था
प्रवचन प्रेम पर !
और मैंने खो दी
बोलने की शक्ति भी ,
जब से महसुसू किया
मेरे होठों ने
प्रेम की पवित्र अग्नि को !

मैं गाता था प्रेम गीत !
और फिर मैं कभी नही सुन सका
गीत का एक शब्द तक
अपनी सांसो में भी ,
क्योकि प्रेम ने जन्म लिया
मेरे ह्रदय की गहराइयों में
उसने इंकार कर दिया
शब्दों में बधने से !

मैने पढ़े थे प्रेम के साहित्य
मेरे पास उत्तर थे
हर प्रश्न के !
और ढक लिया मुझे
प्रेम के आँचल ने
फिर एक ही उत्तर था
मेरे निरुत्तर ज्ञान के पास

प्रेम विचित्र है जीवन से भी
और इसके रहस्य
मृत्यु से भी गहरे !



............................ अरुन श्री !

नज़्म - तस्वीर अधूरी है अभी


मिलन की ओश से निखरा ये गुलाबी चेहरा
आखिरी लम्हों की कुछ भर दो सफेदी इनमे
रीत ही जाएगा आखिर ये छलकता अमृत
सुर्ख होठों पे अभी से जरा सी प्यास धरो
बाल बिखरा तो दिए है ये बहुत खूब किया
इनमे अब भटके हिरन सी जरा उलझन डालो
इसकी आँखों में ये जो ख्वाब सजा रखा है
अभी ये ख्वाब चमकते हैं सुनहले है बहुत
सुनहरे ख्वाब की पलकों पे सजा दो काजल
और काजल सने कोरों पे दो आसूं रख दो

अभी कुछ प्यार की बारीकियां भरो इनमे
मेरे जीवन की ये तस्वीर अधूरी है अभी




........................................................अरुन श्री

नए वर्ष का नूतन गीत


टूटे सुर सब जोड़ बना डालें कोई सुमधुर संगीत
आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत

नव सूरज से मैं ले लूँगा चमकीली आशा किरने
तुम ले लेना नई रात से ख्वाब सुनहरे जीवन के
उजली धरती नए साल की थोड़ी और सजानी है 
तुम बिखरी उम्मीद बटोरो मैं टुकड़े टूटे मन के 

भूल पुरानी ठोकर ढूँढे नई मंजिलें स्वर्णिम जीत
आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत


साथ मेरे हो तेरी कोमल फुल सी उर्जावान छुअन
मेरे प्रयास तब अपने जीवन में खुशहाली भर देंगे
बहुत रहा है अब न रहेगा विराना इस उपवन में
फिर मेरे श्रम -वारि बिंदु बंजर हरियाली कर देंगे

नए साल में नई ऊंचाई तक पहुचेगी अपनी प्रीत
आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत



................................................ अरुन श्री !

ग़ज़ल - खुशबु पसीने से


जरा कुछ आग भी बाहर निकालो आप सीने से
कभी दुःख कम न होंगे दोस्तों बस दर्द पीने से

भले तोडा मगर थोड़ी सी तो तहजीब रहने दो
ये टुकड़े है मेरे दिल के इन्हें रक्खो करीने से

भुला रक्खा है बरसों से मेरी चाहत तेरे दिल ने
मुझे भी याद तुम आए नही हो कुछ महीने से

कमाके मैंने माँ के हाथ मेहनत सौप दी अपनी
अजब खुशबु सी अब आने लगी मेरे पसीने से

मेरा क्या है मुझे सब लोग माथे पर सजाएंगे
मगर तुम हाथ धो बैठोगे मुझ जैसे नगीने से


......................................................अरुन श्री!

ग़ज़ल - ऊँची ईमारत


बेवफा होना तेरा क्या क्या सितम ढाने लगा
अब तो मैं मंदिर में भी जाने से घबराने लगा

हो अलग तुमने जला डाली थी मेरी याद तक
मैं तेरी तस्वीर से दिल अपना बहलाने लगा

भोर की पहली किरण जिसको चुराकर मैंने दी
दूसरे के घर को अब वो फूल महकाने लगा

सर्द रातों में लिपट जाता था कोहरे की तरह
मैं बना सूरज तो दुःख का चाँद शरमाने लगा

घर के आगे जब से इक ऊँची ईमारत बन गई
मेरे घर आने से अब सूरज भी कतराने लगा




…………………………………........…................. अरुन श्री !

पुराने घाव - नई उँगलियाँ


बहुत दुखते हैं
पुराने घाव ,
जब आती हैं
मरहम लगाने
नई उँगलियाँ !
उन्हें नही पता -
कितनी है
जख्म की गहराई ,
क्या होगी
स्पर्श की सीमा !
उसमे नही होती
पुराने हाथों जैसी छुअन !

रिसने दो
मेरे घावों को ,
क्योकि बहुत दुखतें हैं
पुराने घाव
जब आती है
मरहम लगाने
नई उँगलियाँ !

अब और दर्द सहा न जाएगा !


.................................... अरुन श्री !

दीपावली


दीपावली की रात है !
अभी बाकि भी है,
बस खत्म होना चाहती है !

अभी जब डूबा था
पिछला सूरज,
जलाए थे दिए मैंने
खुशी के,
प्रीत के,
अर्थ खोती रीत के !

डूब गया था कालापन
नई रंगीनियों में !

पुरानी करवटों पर
डाल दी थी नई चादरें !

खरीद ली थी
बिकाऊ मिठाइयां !

लेकिन नही खरीद पाया,
मिठास
जिंदगी की !
दूर नही हुआ
विचारों का कसैलापन !

अभी-अभी बदले चादरों पर
उभर आई है
पुराने बिस्तर की सिलवटें !

रंगीन किए हुए दीवारों से
झक रहे है अब भी
कुछ पुराने धब्बे !

पटाखों के शोर में भी
चीखता है ह्रदय के कोने से
एक अंतहीन सूनापन !

दिए की जगमगाती रोशनी से
चौंधियाती हुई आँखों में ,
एक कतरा अँधेरा
कहीं सहमा हुआ है !!


................................ अरुन श्री !!

एक मुट्ठी धूप


तुम्हे शिकायत है
इस गहरे अँधेरे से ,
पर क्या तुमने कोशिश की
एक दिया जलने की !
या मेरे हाथों से हांथों मिलाकर
बनाया कोई सुरक्षा घेरा !
कुछ जलते दीयों को
हवा से बचाने के लिए !

नही ना ?

कोई बात नहीं !
अभी सूखा नही है
समय का फूल !

चलो ढूँढे !
समंदर में डूबे सूरज को ,
इकठ्ठा करें
एक मुट्ठी धूप ,
उछाल दें पर्वतों पर ,
घाटियों में भी !
खिला दें
मुरझाते फूलों को !

कुछ तो पिघले ,
गुलाब की पंखुड़ियों पर जमी
ओश की बूंदें !
और पहुंचे
नर्म नंगी दूब तक !

वो दर्द
जो ठंढी हवाओं ने बढ़ा दिया है
कुछ तो कम हो !




..................................... अरुन श्री !

कहो मानव


तुम शीश झुकाते हो
सम्मुख किसी देव के ,
और तुम्हारी आत्मा कर उठती है
ईश्वर विरुद्ध आचरण !

तुम्हे कंठस्थ है अक्षरसः
अपने धर्मग्रन्थ ,
परन्तु खो दिए तुमने
उसके प्रकाश शब्द
जो प्रभु के अंतःकरण से निकले !

तुम्हारे होंठ हिलते है
प्रार्थना के लिए
और उसी समय
तुम्हारे ह्रदय भरे होते है
भौतिक वासनाओ से !

कहो मानव !
क्यों न अस्वीकार कर दी जाए
तुम्हारी प्रार्थनाएं !




................................ अरुन श्री !

ग़ज़ल - बंजर रहने दो


नहीं चाहता तुम ख्वाबों के प्यारे मंजर रहने दो
पर सूखे होंठों की खातिर नयन समंदर रहने दो

नीद लूट ली सपने छीने रीत गई अब आँखे भी 
मेरे हिस्से में कम से कम ये दिल बंजर रहने दो

गुम रहते हो मंदिर के यश गानों और चढावों में
क्या छीनोगे तुम कातिल हाथों से खंजर रहने दो

मेरे दिल पर राज करोगे क्या कहते हो छोडो भी
इस पागल को मेरे रब का मस्त कलंदर रहने दो 



.................................................... अरुन श्री !

सार्थक या अर्थहीन ?


नदी
धरती की छाती से निकली
दूध की धारा !
जीवन बाटती है !

लेकिन दूर नही कर पाती
सागर का खारापन !

कुछ ही पलों में
अर्थहीन हो जाती है
एक लंबी और सार्थक यात्रा !




.......................... अरुन श्री !

पिता


वो कोई अवतार नही है
न ही कोई शापित देव
पुराने मंदिर के द्वार पर
अडिग खड़ा
वक्त के थपेडों को मुह चिढाता
एक बुढा पेड़ है वो !

हे ईश्वर !
मेरे बच्चे को भी मिले
इसकी ममतामई
और अनुभवी छाव !


........................... अरुन श्री !

सार्थकता


खोज में
प्रकाश के रहस्य की
एक पतंगा
जल जाता है
हटाते हुए
दीप शिखा का परदा  !

एक छछुंदर
बिता देती है सारा जीवन
अँधेरे में
मृत्यु के डर से

निरर्थक जीवन से अच्छी है
सार्थक मृत्यु !


......................... अरुन श्री !

उत्तर ढूंढना है


काश !
कोई दिन मेरा घर में गुजरता
बेवजह बातें बनाते
हँसते हँसाते
गीत कोई गुनगुनाते
पर नही मुमकिन
मैं दिन घर में बिताऊँ!

एक नदी प्यासी पड़ी घर में अकेले
और रेगिस्तान में मैं जल रहा हूँ
थक चुका पर चल रहा हूँ
ढूढता हूँ अंजुली भर जल
जिसे ले
शाम को घर लौट जाऊँ
प्यास को पानी पीला दूँ !

मेरे आँगन की बहारों पर
जवानी छा गई है
और मैं
धूप के बाज़ार में बैठा हुआ हूँ
सूखता हूँ
भीगी लकड़ी की तरह से
घर के चूल्हे में
अभी जलना भी होगा !

चाहता हूँ
मेरे आँगन की बहारें
खिल उठे
प्यार का मेरे मधुर स्पर्श पाकर
सोचता हूँ डूब जाऊँ
प्यार की प्यासी नदी में !

पर विवश हूँ
क्या करूं मैं
भूख की रेखा खिची है ,
प्रश्न रोटी का खड़ा है बीच अपने
और उत्तर ढूंढना है !!



............................................ अरुन श्री!

कन्यादान


कन्यादान-
वो अलौकिक शब्द ,
जो ले जाता है हर माँ को
बेटी के बचपन तक ,
स्मृतियों के आंगन तक !
.
बार बार नज़र उठती है
छुप छुप कर ,
रुक रुक कर ,
टीन के पुराने बक्से में बंद
गुड्डे-गुड़ियों की ओर !
और नयन  कोर
बार बार भीगते है ,
भीग भीग सूखते है !
.
आज देखकर
दुपट्टा संभालती बेटी को ,
अचानक याद आ जाती है
बदन में धूल
और बालों में पुआल लपेटे ,
दिन भर की थकन आखों में समेटे
सामने खड़ी बेटी !
जो सोती भी ना थी
बिना माँ की धड़कन सुने !
.
आज सोचती है
बहुत दिन हुए ,
बेटी को अपनी धड़कन सुनाए !
दुनियादारी की बातें सुनते सुनते
अब तो भूल भी गई होगी !
फिर से मन करता है
कि बेटी को सीने से लगाए ,
उसे धड़कन सुनाए
और सपने भी
जो उसके लिए बुनती रही
अब तक !
.
दान-
प्राण में बसी बेटी का
कितना दारुण ,
लेकिन कितना महान !
ये भी तो है
कर्ण का सा महादान !
लेकिन फिर भी डर है ,
आकुल अंतर है -
कि दान लेने वाला
कहीं इन्द्र तो नही ?
.
.
............................. अरुन श्री !