Monday, March 12, 2012

बिन तुम्हारे मैं अधूरा


अश्रु गण साथी रहे
मेरे ह्रदय की पीर बनकर !
रात चुभ जाती हमेशा तीर बनकर !
मैं भटकता नीर बनकर !
तुम सुनहरे स्वप्न सी हो
मैं नयन हूँ !
बिन तुम्हारे मैं अधूरा
और मेरे बिन तुम्हारा अर्थ कैसा !

जीत की उम्मीद से प्रारंभ होकर
निज अहम के हार तक का ,
प्रथम चितवन से शुरू हो प्यार तक का ,
प्यार से उद्धार तक का
मार्ग हो तुम !
मै पथिक हूँ !
निहित हैं तुझमे सदा से
कर्म मेरे
भाग्य मेरा,
और सार्थकता तुम्हारी
कौन है मेरे अलावा !

मेरे माथे का तिलक हो
कौन कहता धूल हो तुम !
कीच में हो किन्तु पावन फूल हो तुम !
रंग की सुन्दर मरीचिका से परे
तुम गंध हो !
मैं पवन हूँ !
है तेरे सानिध्य से पहचान मेरी ,
और मेरे बिन
तुम्हारा भी कहाँ अस्तित्व होगा !

तुम विभा हो
और मैं  
तेरा अरुण हूँ !
कर्म मैं विश्राम हो तुम !
मैं नही तो कौन तुमको मान देगा
तुम न हो तो
कौन देगा अर्घ्य मुझको !


......................................अरुन श्री !

No comments:

Post a Comment