तुम शीश झुकाते हो
सम्मुख किसी देव के ,
और तुम्हारी आत्मा कर उठती है
ईश्वर विरुद्ध आचरण !
तुम्हे कंठस्थ है अक्षरसः
अपने धर्मग्रन्थ ,
परन्तु खो दिए तुमने
उसके प्रकाश शब्द
जो प्रभु के अंतःकरण से निकले !
तुम्हारे होंठ हिलते है
प्रार्थना के लिए
और उसी समय
तुम्हारे ह्रदय भरे होते है
भौतिक वासनाओ से !
कहो मानव !
क्यों न अस्वीकार कर दी जाए
तुम्हारी प्रार्थनाएं !
................................ अरुन श्री !
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