Monday, March 12, 2012

ग़ज़ल - खुशबु पसीने से


जरा कुछ आग भी बाहर निकालो आप सीने से
कभी दुःख कम न होंगे दोस्तों बस दर्द पीने से

भले तोडा मगर थोड़ी सी तो तहजीब रहने दो
ये टुकड़े है मेरे दिल के इन्हें रक्खो करीने से

भुला रक्खा है बरसों से मेरी चाहत तेरे दिल ने
मुझे भी याद तुम आए नही हो कुछ महीने से

कमाके मैंने माँ के हाथ मेहनत सौप दी अपनी
अजब खुशबु सी अब आने लगी मेरे पसीने से

मेरा क्या है मुझे सब लोग माथे पर सजाएंगे
मगर तुम हाथ धो बैठोगे मुझ जैसे नगीने से


......................................................अरुन श्री!

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