दीपावली की रात है !
अभी बाकि भी है,
बस खत्म होना चाहती है !
अभी जब डूबा था
पिछला सूरज,
जलाए थे दिए मैंने
खुशी के,
प्रीत के,
अर्थ खोती रीत के !
डूब गया था कालापन
नई रंगीनियों में !
पुरानी करवटों पर
डाल दी थी नई चादरें !
खरीद ली थी
बिकाऊ मिठाइयां !
लेकिन नही खरीद पाया,
मिठास
जिंदगी की !
दूर नही हुआ
विचारों का कसैलापन !
अभी-अभी बदले चादरों पर
उभर आई है
पुराने बिस्तर की सिलवटें !
रंगीन किए हुए दीवारों से
झक रहे है अब भी
कुछ पुराने धब्बे !
पटाखों के शोर में भी
चीखता है ह्रदय के कोने से
एक अंतहीन सूनापन !
दिए की जगमगाती रोशनी से
चौंधियाती हुई आँखों में ,
एक कतरा अँधेरा
कहीं सहमा हुआ है !!
................................ अरुन श्री !!
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