वो दिन भले रहे जो वफ़ा थी हिजाब में
परदा हटा कि डूब चुके हम शराब में
परदा हटा कि डूब चुके हम शराब में
वो तो जला चुका है सुगंधें बहार की
मैं सोचता हूँ फूल मिलेंगे किताब में
मैं सोचता हूँ फूल मिलेंगे किताब में
मैं बांटता रहा था खुशी घूम घूम कर
फिर यूँ हुआ कि डूब गया मैं अजाब में
फिर यूँ हुआ कि डूब गया मैं अजाब में
वो तो सिले की बात कभी सोचता नहीं
है कर के नेकियाँ जो बहाता चनाब में
है कर के नेकियाँ जो बहाता चनाब में
अपना पता लिखा न खतों में कभी उसे
वो चाहकर भी कुछ न लिखेगा जवाब में
वो चाहकर भी कुछ न लिखेगा जवाब में
मैं जुगनुओं को कैद करूँगा नहीं कभी
कुछ रोशनी बची है मिरे आफ़ताब में
कुछ रोशनी बची है मिरे आफ़ताब में
…………………………............... अरुन श्री!
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