तेरे संग जीवन बीता था
बहुत दिनों तक !
कब सोचा था
तेरा जाना ऐसा होगा !
बिना प्रतीक्षा किए तुम्हारी
अब तो जल्दी सो जाता हूँ !
बुझा दिया करती थी जो तुम ,
दिया रात भर जलता है अब !
बतियाता है भोर भोर तक ,
कीटी-पतंगों से हँस-हँस कर !
खुश रहता हैं !
और पुराने चादर पर अब
नहीं उभरती ,
रोज–रोज की नई सिलवटें !
मैं भी सारी फिक्र भुला कर
सूरज चढ़ने तक सोता हूँ !
नही जगाती
अब कोई चूड़ी की खन-खन !
कानों को आराम मिला
बर्तन धोने की आवाजों से !
और ऊँघते होंठ ,
चाय की प्याली याद नही करते हैं ,
पहली चुस्की में अक्सर जल ही जाते थे !
साथ तुम्हारे मैं चलता था ,
घायल पैरों की छागल बन !
चलती थी तुम
धीरे–धीरे ,
संभल-संभल कर ,
रहता था संगीत अधूरा !
फिर तेरे कोमल हाथों ने
मेरी किस्मत के माथे पर
यादों का संदूक लिख दिया !
अब जीवन में सूनापन है !
तेरे बीन जीवन सूना था
बहुत दिनों तक !
फिर भी याद नही आती अब !
कब सोचा था
तेरा जाना ऐसा होगा !
.................................. अरुन श्री !