Monday, May 7, 2012

गज़ल - पत्थर से सपनें

देखे होंगे जाने  क्या क्या उसकी आखों  ने सपनें
वो तन्हा  होकर भी बाँट  रहा है रिश्तों के सपनें

टूट चुका हूँ लड़कर  लहरों से पर डूब नही सकता
कंधे  पर  हैं माँ बाबूजी  बीवी  बच्चों  के सपनें

उम्मीदों की राख  बटोरे रात  गए घर लौटा जब
देखा  बेटी की  आखों में तितली के पर से सपनें

मंजिल पानी  है तो पांव जमीं पर ही रखना होगा
बेशक  आखें  देख रहीं हों चाँद सितारों के सपनें

छांव मिलेगी औरों को जाना फिर भी खूँ से सींचा
माँ बाबूजी  ने  कब  देखे पेड़ों  में फल के सपनें

शीशे सा नाजुक होना भी अच्छी बात नहीं लेकिन
औरों  का दिल तोड़ न डाले देखो पत्थर से सपनें



................................................. अरुन श्री !

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