Thursday, May 31, 2012

तेरा जाना


तेरे संग जीवन बीता था
बहुत दिनों तक !
कब सोचा था
तेरा जाना ऐसा होगा !

बिना प्रतीक्षा किए तुम्हारी
अब तो जल्दी सो जाता हूँ !
बुझा दिया करती थी जो तुम ,
दिया रात भर जलता है अब !
बतियाता है भोर भोर तक ,
कीटी-पतंगों से हँस-हँस कर !
खुश रहता हैं !
और पुराने चादर पर अब
नहीं उभरती ,
रोजरोज की नई सिलवटें !

मैं भी सारी फिक्र भुला कर
सूरज चढ़ने तक सोता हूँ !
नही जगाती
अब कोई चूड़ी की खन-खन !
कानों को आराम मिला
बर्तन धोने की आवाजों से !
और ऊँघते होंठ ,
चाय की प्याली याद नही करते हैं ,
पहली चुस्की में अक्सर जल ही जाते थे !

साथ तुम्हारे मैं चलता था ,
घायल पैरों की छागल बन !
चलती थी तुम
धीरेधीरे ,
संभल-संभल कर ,
रहता था संगीत अधूरा !
फिर तेरे कोमल हाथों ने
मेरी किस्मत के माथे पर
यादों का संदूक लिख दिया !
अब जीवन में सूनापन है !

तेरे बीन जीवन सूना था
बहुत दिनों तक !
फिर भी याद नही आती अब !
कब सोचा था
तेरा जाना ऐसा होगा !



.................................. अरुन श्री !

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