Monday, May 7, 2012

सूरज भी उन्हें क्या देगा


मैंने देखा है -
हलांकि जार-जार टूटे हुए ,
हवादार
फिर भी उमस में डूबे हुए
झोपडो में जो चेहरे रहते है ,
इस जानलेवा भागम भाग में भी
वो चेहरे ठहरे रहते हैं !
ये ठहरा हुआ वक्त का मरहम
और फिर भी उनके जख्म
गहरे के गहरे रहतें हैं !

टूटी हुई छत से टपकती उदास धूप
नहीं सुखा पाती
सिसकती हुई छाँव की सीलन !

जिनके छिल चुके होंठ
नहीं उठा पाते
गूंगी हँसी का बोझ तक
लेकिन वो उठाए फिरते है
फटी पुरानी साँसों की गठरी !
घायल जिस्म पर
जिंदगी के चीथड़े लपेटे हुए ,
बेजुबां आंसुओं से भरी सपनीली आखें ,
बाट जोहती है
एक नए सूरज की !

अब ये सूरज भी उन्हें क्या देगा !
छिल चुके जिस्म को जला देगा !
उनके हर चमकीले सपनों को ,
एक और नई रात की स्याही में डूबा देगा !




................................................... अरुन श्री !

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