Monday, May 7, 2012

मुझे अँधेरा चाहिए


मै सफ़र में हूँ
चल रहा हु सालों से
गंतव्य तक लेकिन नहीं पहुंचा !
जाने कब तक भागना पड़ेगा
सच की रौशनी से
झूठ के अंधेरे की ओर ?
नही जानता !

दिन भर की आपा-धापी में
थके थके मन को
चारपाई पर जा कर भी
तुम्हारी याद आती है
नींद से पहले !
अब भी दिख जाता है

तुम्हारा चेहरा
आँखे बंद करते ही !


दिल ढूढता है अब भी
वो झूठ का अँधेरा -
जिसमे तुमने मुझे रखा
सालों तक !
जिस अँधेरे में मैंने बिता दिए
अपने जीवन के सबसे खुबसूरत दिन !
और जब जीवन बना वो अँधेरा
तो तुमने कहा
"लो, ये रोशनी है "!

कैसे सह पाती मेरी आँखे ?
कैसे देखता वो रोशनी
अंधेरे की आदत जो थी !

अब मुझे रौशनी नही अँधेरा चाहिए ,
और गहरा अँधेरा !
इतना गहरा कि तुम न दिखो
आँखे बंद करते ही !
इतनी ठण्ड ह़ो
कि याद न आए
तुम्हारे जिस्म की गर्मी ,
आग में जलने का मन करे !
.
.
------------------------------------- अरुन श्री !

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