Monday, January 24, 2011

अब मैं दर्द नहीं लिखता हूँ

आज अचानक मिला मुझे एक दोस्त पुराना
नई राह पर,
हाँथ मिलाया, गले मिले फिर
एक दूजे का हाल सुना,
कुछ मौसम की बात हुई
कुछ अपने परिवारों की
आहिस्ते-आहिस्ते जो अब टूट रहे है,
उन रिश्तों का जिक्र हुआ
जो अर्थहीन होने वाले है,
और कुछ खुशियों की बात हुई,
फिर उसने मुझसे पूछ लिया
"क्या अब भी लिखते हो" ?
मै चुप था
सोच रहा था सच न बताऊँ,
और नहीं बताया !

कैसे कहता ?
मन में बनते गीत दबा लेता हूँ मन में
दिल का दर्द नहीं लाता हूँ होंठो पर,

कैसे कहता ?
गला घोंट देता हूँ मैं कविताओं का
जोड़ नही पाता शब्दों की लड़ियों को
शायद इतना टूट चूका हूँ,

कैसे कहता ?
जीना मैंने छोड़ दिया है
दर्द बंधा था जिन धागों से, तोड़ दिया है,

कैसे कहता ?
जिसके लिए लिखता था अब वो रूठ चूका है
जिस रिश्ते पर अंहकार था, टूट चूका है
अब तो जितना हो सकता है खुश रहता हूँ
दिल तो दुखता है लेकिन अब चुप रहता हूँ,

अब मैं दर्द नहीं लिखता हूँ !!!!

-----------------------------"अरुन श्रीवास्तव"

1 comment:

  1. फिर उसने मुझसे पूछ लिया
    "क्या अब भी लिखते हो" ?
    मै चुप था
    सोच रहा था सच न बताऊँ,
    और नहीं बताया !

    कैसे कहता ?
    मन में बनते गीत दबा लेता हूँ मन में
    दिल का दर्द नहीं लाता हूँ होंठो पर,

    कैसे कहता ?
    गला घोंट देता हूँ मैं कविताओं का
    जोड़ नही पाता शब्दों की लड़ियों को
    शायद इतना टूट चूका हूँ,

    कैसे कहता ?
    जीना मैंने छोड़ दिया है
    दर्द बंधा था जिन धागों से, तोड़ दिया है,

    कैसे कहता ?
    जिसके लिए लिखता था अब वो रूठ चूका है
    जिस रिश्ते पर अंहकार था, टूट चूका है
    अब तो जितना हो सकता है खुश रहता हूँ
    दिल तो दुखता है लेकिन अब चुप रहता हूँ,

    अब मैं दर्द नहीं लिखता हूँ !!!!


    bahut khoob saahab...............dil ko chhoo gayi aapki ye kavita to.

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