Monday, May 7, 2012

गज़ल - उन्हें हक है


उन्हें हक है कि मुझको आजमाएं
मगर  पहले  मुझे  अपना बनाएं

खुदा  पर है यकीं तनकर चलूँगा
जिन्हें डर है खुदा का सर झुकाएं

जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर
चलो   बैठे  कहीं  आँसू  बहाएं

तुम्हारे  आफताबों  की वज़ह से
अभी  कुछ सर्द  है  बाहर हवाएं

तिरा  दरबार है मुंसिफ  भी तेरे
कहूँ  किससे  यहाँ  तेरी  खताएं

खता उल्फत की करने जा रहा हूँ
कहो  अय्याम  से  पत्थर उठाएं

अंधेरे  सूर्य  से  डरते  नही  है
चलो  हम दीप बनकर जगमगाएं



............................. अरुन श्री !

No comments:

Post a Comment