मैं दिया करता था
प्रवचन प्रेम पर !
और मैंने खो दी
बोलने की शक्ति भी ,
जब से महसुसू किया
मेरे होठों ने
प्रेम की पवित्र अग्नि को !
मैं गाता था प्रेम गीत !
और फिर मैं कभी नही सुन सका
गीत का एक शब्द तक
अपनी सांसो में भी ,
क्योकि प्रेम ने जन्म लिया
मेरे ह्रदय की गहराइयों में
उसने इंकार कर दिया
शब्दों में बधने से !
मैने पढ़े थे प्रेम के साहित्य
मेरे पास उत्तर थे
हर प्रश्न के !
और ढक लिया मुझे
प्रेम के आँचल ने
फिर एक ही उत्तर था
मेरे निरुत्तर ज्ञान के पास
प्रेम विचित्र है जीवन से भी
और इसके रहस्य
मृत्यु से भी गहरे !
............................ अरुन श्री !
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