Monday, March 12, 2012

एक मुट्ठी धूप


तुम्हे शिकायत है
इस गहरे अँधेरे से ,
पर क्या तुमने कोशिश की
एक दिया जलने की !
या मेरे हाथों से हांथों मिलाकर
बनाया कोई सुरक्षा घेरा !
कुछ जलते दीयों को
हवा से बचाने के लिए !

नही ना ?

कोई बात नहीं !
अभी सूखा नही है
समय का फूल !

चलो ढूँढे !
समंदर में डूबे सूरज को ,
इकठ्ठा करें
एक मुट्ठी धूप ,
उछाल दें पर्वतों पर ,
घाटियों में भी !
खिला दें
मुरझाते फूलों को !

कुछ तो पिघले ,
गुलाब की पंखुड़ियों पर जमी
ओश की बूंदें !
और पहुंचे
नर्म नंगी दूब तक !

वो दर्द
जो ठंढी हवाओं ने बढ़ा दिया है
कुछ तो कम हो !




..................................... अरुन श्री !

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